“मैं जिंदा हूं साहब…” : 3 साल से सरकारी रिकॉर्ड में खुद को जिंदा करने दर-दर भटक रहा किसान

बालोद जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक किसान सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित किया गया है और अब वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रहा है। यह कहानी है ग्राम दुबचेरा निवासी रामप्रसाद यादव की, जो पिछले तीन साल से “साहब, मैं जिंदा हूं” कहकर सरकारी दफ्तरों में दर-दर की ठोकरें खा रहा है।

‘मैं जिंदा हूं साहब…’ 3 साल से सरकारी रिकॉर्ड में खुद को जिंदा करने दर-दर भटक रहा किसान
‘मैं जिंदा हूं साहब…’ 3 साल से सरकारी रिकॉर्ड में खुद को जिंदा करने दर-दर भटक रहा किसान

मामला क्या है?

रामप्रसाद यादव, एक छोटे से किसान, ने कभी नहीं सोचा था कि सरकारी दस्तावेज़ों में उसका नाम ही मृत घोषित कर दिया जाएगा। दरअसल, उनके बड़े बेटे के निधन के बाद उसकी जमीन को बहनों के नाम पर ट्रांसफर करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसी दौरान फौती उठाने पर यह खुलासा हुआ कि सरकारी रिकॉर्ड के B1 दस्तावेज़ में रामप्रसाद यादव को मृत घोषित कर दिया गया था। इससे उनकी जमीन के नाम में बदलाव की प्रक्रिया रुक गई।

चिंता की बात यह थी कि, जबकि वह जिंदा थे, फिर भी उनके नाम को मृत घोषित किया गया था, जिसके कारण उन्हें अपनी संपत्ति से जुड़ी सारी कानूनी प्रक्रिया में दिक्कतें आ रही थीं। इसके बाद, रामप्रसाद का छोटा बेटा अपने पिता के साथ तहसील कार्यालय और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर लगाता रहा।

सरकारी अधिकारियों से मदद

रामप्रसाद यादव की यह समस्या एक लंबी कानूनी प्रक्रिया बन गई, जिससे वह लगातार परेशान हो रहे थे। उन्होंने कलेक्टर कार्यालय में जाकर अपनी समस्या बताई, जहाँ अपर कलेक्टर चंद्रकांत कौशिक ने उनकी शिकायत को गंभीरता से लिया। उन्होंने तत्काल संबंधित एसडीएम को कॉल कर त्रुटि सुधारने का निर्देश दिया।

इस प्रकार, चंद्रकांत कौशिक ने रामप्रसाद यादव की समस्या का समाधान करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाया। यह कदम न केवल रामप्रसाद के लिए राहत का कारण बना, बल्कि यह सरकारी तंत्र की लापरवाही और दस्तावेज़ों में होने वाली गलतियों को उजागर भी करता है।

सरकारी प्रणाली में सुधार की जरूरत

रामप्रसाद यादव के जैसे कई किसान और आम लोग हैं, जो सरकारी दस्तावेज़ों में छोटी-छोटी गलती के कारण भारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। इस घटना से यह साफ हो जाता है कि सरकारी तंत्र में सुधार की सख्त जरूरत है, ताकि किसी भी नागरिक को अपनी पहचान साबित करने के लिए संघर्ष न करना पड़े।

सरकारी रिकॉर्ड की गलतियों को तुरंत सुधारने के लिए सही प्रणाली और प्रक्रिया का होना अत्यंत आवश्यक है, ताकि नागरिकों को बेवजह के कष्टों का सामना न करना पड़े।

निष्कर्ष

रामप्रसाद यादव की यह संघर्षपूर्ण कहानी केवल एक किसान के लिए नहीं, बल्कि हर उस नागरिक के लिए एक सबक है, जो सरकारी दस्तावेज़ों में किसी भी प्रकार की त्रुटियों के कारण परेशान हो रहे हैं। यह मामला यह भी दिखाता है कि अधिकारियों के सकारात्मक दृष्टिकोण और त्वरित कार्यवाही से किसी भी समस्या का समाधान संभव है।

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“साहब, मैं जिंदा हूं…” – रामप्रसाद यादव का यह सवाल न केवल उनकी अपनी पीड़ा को दर्शाता है, बल्कि यह सरकारी तंत्र की अव्यवस्था पर भी एक सवाल है।

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